दोस्तों, जैसा कि आप जानते हैं गौरीकुंड रुद्रप्रयाग में स्थित एक धार्मिक स्थल है, क्योंकि इसका संबंध भगवान शिव और गौरी से है। इसलिए बहुत सारे भक्तगण गौरीकुंड की यात्रा करने के लिए उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग शहर में जाते हैं। इस मान्यता को देखकर कुछ भक्त उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित गौरीकुंड का इतिहास व संपूर्ण जानकारी भी पाना चाहते हैं। साथ ही इससे जुड़ी धार्मिक कथाओं के बारे में भी जानना चाहते हैं।
आइए आज के इस लेख में हम गौरीकुंड के बारे में ही बात करते हैं और उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित गौरीकुंड का इतिहास व संपूर्ण जानकारी प्राप्त करते हैं। तो यह बिना देरी किए शुरू करें।
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गौरी कुंड कहां स्थित है?
उत्तराखंड राज्य में रुद्रप्रयाग नामक जिला है जहां पर सोनप्रयाग गांव है। गौरीकुंड इसी रुद्रप्रयाग जिले के सोनप्रयाग के पास स्थित है। गौरीकुंड के पास से ही एक मंदाकिनी नदी बहती है, जहां से लोग केदारनाथ धाम और वासुकी ताल की यात्रा शुरू करते हैं।
गौरीकुंड समुद्र तल से 1981 मीटर ऊंचाई पर स्थित है और गौरीकुंड से केदारनाथ की दूरी 14 किलोमीटर तक की है। जब भी लोग केदारनाथ की यात्रा शुरू करते हैं तो सबसे पहले कौरी कुंड में स्नान जरूर करते हैं।
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में स्थित गौरीकुंड का इतिहास
गौरीकुंड का इतिहास बहुत ही बड़ा है और इससे संबंधित कई कहानियां प्रचलित है। दरअसल इससे संबंधित दो कहानियां काफी ज्यादा प्रचलित हैं जो कि माता पार्वती से संबंधित है और दूसरी कहानी गणेश भगवान से संबंधित है।
गौरीकुंड की पार्वती माता से जुड़ा इतिहास
इस कथा के अनुसार यह माना जाता है कि इसका नाम गौरीकुंड माता पार्वती के दूसरे नाम गौरी पर रखा गया है। दरअसल जब माता सती ने अपने पिता दक्ष के द्वारा अपमानित होने पर अग्नि में आत्मदाह कर लिया था तो भगवान शिव ने राजा दक्ष का वध कर दिया।
वध करने के पश्चात भगवान शिव एक लंबी साधना में चले गए। इन्हीं की साधना के बीच माता सती का पुनर्जन्म हुआ और वह हिमालय पुत्री कहलाए। इनका नाम पार्वती रखा गया था।
तो अब पार्वती जी ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए गौरीकुंड आस्थान पर ही बैठकर घोर तपस्या की थी और तब जाकर ही भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह करने के लिए तैयार हो गए थे। क्योंकि माता पार्वती ने गौरीकुंड स्थान पर ही बैठकर तपस्या की इसी के कारण इस स्थान का नाम गौरीकुंड पड़ गया।
हम आपको यह भी बता दे कि शिव और पार्वती जी का विवाह त्रियुगी नारायण मंदिर में संपन्न हुआ था जो कि गौरीकुंड से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
गौरीकुंड कि भगवान गणेश से जुड़ा इतिहास
दरअसल इस कथा में भगवान गणेश और माता पार्वती दोनों का ही जिक्र है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि माता पार्वती ने अपने मल द्वारा भगवान गणेश का निर्माण किया था और उन्हें बच्चे का रूप दिया था।
तो माता पार्वती जब भगवान गणेश कोमल द्वारा निर्माण कर रही थी तो उन्होंने इसी गौरी कुंड में स्नान किया था और इसीलिए इसका नाम गौरीकुंड रखा गया। इसके साथ-साथ भगवान गणेश को हाथी का सर भी इसे गौरीकुंड नामक स्थान पर प्राप्त हुआ था जिसके कारण गौरी कुंड में स्नान करने की बहुत अधिक मान्यता है।
गौरीकुंड से संबंधित कुछ जानकारियां
जैसा कि हमने आपको बताया गौरीकुंड उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और इसकी ऊंचाई लगभग 6499 फीट है। हम आपको यह भी बता दें कि गौरीकुंड में वासुकी गंगा और मंदाकिनी नदी भी आकर मिलती है।
गौरीकुंड से ही केदारनाथ तक के लिए और वासु की ताल के लिए पैदल यात्रा प्रारंभ होता है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मंदाकिनी तट पर गौरीकुंड में पानी के दो सोते हैं जिनमें से एक सोता 53 डिग्री सेल्सियस और दूसरा सोता 23 डिग्री सेल्सियस है।
गौरीकुंड के गर्म पानी का तीसरा सोता भी है जो कि बद्रीनाथ मंदिर के ठीक नीचे है। और वहां पर इसका तापमान 410 डिग्री सेल्सियस होता है।
गौरीकुंड कब जाए?
ऐसे तो आप गौरीकुंड कभी भी जा सकते हैं परंतु अगर आप केदारनाथ की यात्रा करते समय गौरी कुंड आना चाहते हैं तो आप सर्दियों में यहां पर ना आए। क्योंकि केदारनाथ के द्वार सर्दियों में 6 माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद केदारनाथ के द्वार मई महीने में अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते हैं।
यदि आप सर्दियों के मौसम में भी गौरीकुंड आना चाहें तो आ सकते हैं लेकिन यहां पर सर्दियों के मौसम में काफी बर्फबारी होती है, जिसके कारण लोग ऐसे समय पर यहां आना कम पसंद करते हैं। लेकिन गौरीकुंड में स्नान करने की बहुत मान्यता होती है।
निष्कर्ष
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